बुद्ध के शिष्य
Hindi moral story of Buddha
एक बार गौतम बुद्ध के दो शिष्य नगर – नगर भ्रमण कर रहे थे। दोनों ही शिष्य बहुत आज्ञाकारी थे। शिष्यों के लिए बनाए गए नियमों का कठोरता से पालन करते थे। उनमें से एक शिष्य ज्यादा अनुभवी, बड़ा व गहरे विचारों वाला था। दूसरा शिष्य कम अनुभवी और गहरी सोच रखने वाला नहीं था।
एक बार चलते चलते उनके रास्ते में एक नदी आ पड़ी। उन्होंने देखा कि नदी के किनारे पर एक सुंदर स्त्री खड़ी थी, जो नदी पार करने की कोशिश कर रही थी। वह बहुत परेशान लग रही थी। नदी में ज्यादा पानी तो नहीं था पर उस स्त्री की नदी पार करने की कोशिश हर बार नाकाम हो रही थी। उस स्त्री को नदी के उस पार से अपनी बूढ़ी माँ के लिए दवाइयाँ लानी थी।
उनमें से जो छोटा शिष्य था वह उस स्त्री के बिना संपर्क में आए, उस स्त्री को अनदेखा कर नदी पार करने लगा। नदी पार करके नदी के दूसरे किनारे पर वह बड़े शिष्य का इंतजार करने लगा।
Moral Story of Buddha
नदी दूसरे किनारे से उसने देखा कि बड़ा शिष्य उस स्त्री से बातचीत कर रहा है। बातचीत के बाद बड़ा शिष्य स्त्री का हाथ पकड़कर उसे नदी पार करवाने लगा। उन दोनों ने एक-दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ा था, जिसकी वजह से बहाव में भी दोनों आसानी से आगे बढ़ रहे थे।
थोड़ी ही देर में उन दोनों ने नदी पार कर ली। वह स्त्री उस बड़े शिष्य का मन: पूर्वक आभार करती है। उसे धन्यवाद देती है और अपने रास्ते चली जाती है।
दोनों शिष्य भी अपने रास्ते पर निकल पड़ते हैं। छोटा शिष्य कुछ देर तक शांति से बिना कुछ बोले चलता है। जैसे अपने मन में कुछ सोच रहा हो। बड़ा शिष्य उसके इस व्यवहार पर गौर करता है और शांति से वह भी आगे बढ़ता है। पर छोटे शिष्य को कुछ बोलता नहीं है।
तभी छोटा शिष्य बोलता है, “तुम एक स्त्री को अपने साथ कैसे ला सकते हो? तुम्हें पता नहीं यह नियमों के खिलाफ है? तुम ऐसे किसी स्त्री को हाथ पकड़कर नहीं ला सकते।”
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तब बड़ा शिष्य बोला: “मैंने उस स्त्री को तो नदी के किनारे पर ही छोड़ दिया। तुम उसे अपने मन में क्यों ढो रहे हो? तुम अभी भी उस स्त्री को अपने मन में साथ लेकर चल रहे हो।”
बड़े शिष्य ने उस स्त्री को वहीं छोड़ दिया और दोबारा उसके बारे में नहीं सोचा। वहीं छोटे शिष्य ने उस स्त्री को स्पर्श नहीं किया पर उसे मन में ढोता रहा। बड़े शिष्य ने नियम तोड़ा पर एक नेक इरादे से, इसे गलत नहीं कहा जा सकता।
छोटे शीशा को समझ में आया कि, हमें बीत गई बातों को भूल जाना चाहिए। उन्हें अपने मन में नहीं ढोना चाहिए। बड़ा शिष्य उसे समझाता है, उस स्त्री को नदी पार करने की सख्त आवश्यकता थी। इसलिए उसने स्त्री की मदद की।
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दोस्तों, हमारे साथ भी ऐसा ही होता है। हम किसी बात को सोच सोच कर परेशान होते रहते हैं। हमें भी बीती बातों को जाने देना चाहिए। उसका बोझ नहीं ढोना चाहिए। जो बीत चुका है, वह खत्म हो चुका है। हम सिर्फ आगे बढ़ सकते हैं, उसे बदल नहीं सकते।
बातों को भूलकर हमें अपने आगे आने वाले भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। आप बीती बातों पर ध्यान देंगे तो आपको सिर्फ निराशा ही मिलेगी, इसीलिए बीती बातों को जाने दीजिए और एक सफल भविष्य की ओर देखिए।
सीख: हमें बीती बातों को नहीं ढोना चाहिए और अपने सुंदर भविष्य की ओर देखना चाहिए।
– अविनाश कुमार
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