समय की कीमत
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“आप सभी को नमस्ते, सब कहाँ जा रहे हो?” खरगोश ने पूछा।
“ जाना कहाँ है बेटा, बस, खाने की तलाश में निकली हूँ। तुम बताओ, कैसे हो? घर बनाने की सोच रहे हो या नहीं? यूँ कब तक भटकते रहोगे? घर का इंतज़ाम कर लो, वर्ना कोई मुसीबत आई तो क्या करोगे। बारिश का भी भरोसा नहीं।” चीची ने पीकू से कहा।
“ठीक है। चीची मौसी, चलता हूँ।” यह कह कर वह आगे बढ़ गया।”
उधर पेड़ पर बैठा कालू कौवा इन दोनों की बातचीत सुन रहा था। उसने चीची से कहा-
“काहे उसे समझाने की कोशिश करती हो चीची मौसी? वो भला कभी सुनता है। वो नहीं सुधरने वाला।”
“ क्या करूँ? उसे यूँ वक्त बर्बाद करते देखती हूँ तो बुरा लगता है।” चीची ने कालू को जवाब दिया।
फिर दोनों अपनी राह चल दिए। जंगल में शांति से सब अपना काम करते हुए गुजर-बसर कर रहे थे। सब एक-दूसरे के दोस्त थे। सब एक-दूसरे की हमेशा मदद करते थे। किसी का किसी से कोई बैर नहीं।
एक दिन अचानक कालू कौवा लगातार चिल्ला रहा था। काँव काँव काँव तो उधर, चीकू बंदर भी जंगल में इधर से उधर फुदक-फुदक कर सबको बुला रहा था। इन दोनों का शोर सुनकर सभी अपने घरों से निकल कर जंगल के बीचों-बीच स्थित बड़े पेड़ के नीचे इकट्ठा हो गए। दरअसल, यह जंगल की सभा का संकेत था। जब भी कोई बड़ा फ़ैसला करना हो, सारे पशु-पक्षी ऐसे ही इकट्ठा हो जाते थे।
“ क्या बात है? क्या आफ़त आ गयी, जो यह सभा बुलाई गई है।” सोनू गिलहरी ने पूछा।
“ यह तो सभा शुरू होने पर ही पता चलेगा।” शीना लोमड़ी ने जवाब दिया।
सब इकट्ठा होने के बाद चीकू बंदर ने खड़े होकर कहा-
“ साथियों, बहुत ही ज़रूरी बात करनी है आप सबसे, इसलिए यह सभा बुलाई है।”
“ क्या कोई मुसीबत आ गयी है हम पर?” सुंदर हाथी ने पूछा।
“ मुसीबत ही समझो इसे। आज जब मैं घर पर बोर हो रहा था तो सैर के लिए निकला और जंगल की सीमा तक पहुँच गया। वहाँ मैंने शहर के कुछ आदमियों को एक पेड़ के नीचे बैठे देखा। मुझे वो लोग कुछ सही नहीं लग रहे थे, इसलिए मैं छुप कर उनकी बातें सुनने लगा। वो आपस में कह रहे थे कि जल्दी ही वो जंगल में घुसेंगे और जाल बिछा कर पशु-पक्षियों को पकड़ेंगे।” चीकू बंदर ने कहा।
“ हाँ, चीकू सही कह रहा है। मैं भी वहीं था और मैंने भी पेड़ पर छुप कर उनकी बातें सुनी थीं।वो यह ग़लत काम शहर की पुलिस से छुप कर रहे हैं।” कालू कौवा ने चीकू की बात पर सहमति जताई।
“ यह तो बहुत बड़ी मुसीबत आ गयी हम पर।” भोलू भालू ने सबसे कहा।
“ मुसीबत तो आ गयी है, लेकिन हम बुद्धिमानी और समझदारी से इसका समाधान ढूंड़ें तो इस मुसीबत से बच सकते हैं।” चीची चिड़िया ने कहा।
सोनू गिलहरी ने कहा। “बात तो बिलकुल सही कही आपने, पर हम कुछ कर भी तो नहीं सकते हैं।”
“तुम्हीं अब कुछ सलाह दो चीची।” सुंदर हाथी ने कहा।
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इस पर चीची ने कहा- अरे, करना क्या है, बस, यूँ करें कि हम सब कुछ दिनों के लिए खाने का इंतज़ाम करके अपने घरों में रख लें और फिर घर से बाहर ही न निकलें। जब यह शहर के आदमी वापस चले जाएँ, तब बाहर निकलें।”
“यह तो सही रास्ता है मुसीबत से बचने का।” शीना लोमड़ी बोली।
सभी ने इस पर सहमति जताई और सभा समाप्त हो गयी। फिर सब खाना इकट्ठा करने के लिए अपने-अपने रास्ते चल पड़े। लेकिन पीकू ख़रगोश पर इस सबका कोई असर नहीं पड़ा और वो हमेशा की तरह अपनी मस्ती में आवारागर्दी करता रहा।सबने उसे समझाया, लेकिन लापरवाह पीकू ख़रगोश ने किसी की न सुनी। आख़िरकार शहर के आदमी जंगल में घुस गए।लेकिन, सबने अपने खाने का इंतज़ाम कर लिया था, सभी पशु-पक्षी अपने घरों में छुप कर बैठे थे।
Samay ki kimat
बस एक पीकू ख़रगोश ही था, जिसके पास न तो घर था और न खाना। मुसीबत सर पर आने पर उसे अब डर डरने लगा। उसने सबका दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन किसी ने उसे जगह नहीं दी, क्योंकि सबके घर खाने से भरे हुए थे।
पीकू की यह हालत बब्बर शेर को पता चली। यूँ तो जंगल में सब उससे डरते थे, उससे दूर रहते थे।बब्बर शेर ने पीकू ख़रगोश को अपनी गुफा में छुपने के लिए बुलाया। पहले तो पीकू डरा, लेकिन एक तरफ़ कुआँ तो दूसरी तरफ़ खाई जैसी हालत थी उसकी, इसलिए उसने बब्बर शेर की बात मानने में ही अपनी भलाई समझी।
गुफा में घुसते ही उसे नींद आ गयी और वो सो गया। वो वहीं रहने लगा। कुछ दिनों के बाद शहर के आदमी ख़ाली हाथ लौट गए और सभी अपने घरों से निकल कर सामान्य जीवन जीने लगे। फिर एक दिन-
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“ पीकू अब तो संभल जाओ। देखो, घर न होने से तुम कितनी बड़ी मुसीबत में फँस गए थे। अब तो घर का इंतज़ाम कर लो।” चीची चिड़िया ने पीकू ख़रगोश से कहा।
“ तुम सही कह रही हो चीची मौसी। मैं ही लापरवाह था और समय की कद्र नहीं की। अब मैं समझ गया हूँ कि हमें मेहनत करके ज़िम्मेदारी से हर काम करना है और सही समय पर सही फ़ैसला करने से हर मुसीबत से बचा जा सकता है।वैसे बब्बर भाई का भी धन्यवाद , जो उन्होंने मेरी जान बचाई।” पीकू ख़रगोश ने चीची चिड़िया को जवाब दिया और अपने लिए घर का इंतज़ाम करने निकल पड़ा।
– शाचिता गोगीनैनी
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